सरसालङ्कृतादुष्टशब्दार्थं काव्यमेव तत् ।
विलक्षणचमत्कारबीजं पद्यादिभेदतः ॥ ६० ॥
अन्वयः—सरसालङ्कृतादुष्टशब्दार्थं तत् काव्यमेव पद्यादीनां भेदतः विलक्षणचमत्कार-बीजम् ॥ ६० ॥
व्याख्या—सरसौ = रसान्वितौ, अलङ्कृतौ = अलङ्कारसहितौ, अदुष्टौ = दोषरहितौ, शब्दार्थौ —शब्दश्च = सार्थकपदश्च, अर्थश्च = शब्दार्थौ, यत् तत् काव्यमेव, तच्च पद्यादीनाम्= श्लोकादीनाम्, भेदतः= भेदेन, विलक्षणस्य = अलौकिकस्य चमत्कारस्य, साश्चर्यानन्दस्य, बीजम् = कारणमिति बोध्यम् ॥ ६० ॥
हिन्दी— दोष रहित रस और अलंकारों से युक्त शब्द और अर्थ युक्त कविकर्म को काव्य कहते हैं । पद्य और गद्य के भेद से विलक्षण और चमत्कारजनक काव्य होता है ॥ ६० ॥
सरसेति। सरसौ रसयुक्तौ अलङ्कृतौ अलङ्कारयुक्तौ अदुष्टौ दोषरहितौ शब्दार्थौ यत्र तत् काव्यमेव, तच्च पद्यादीनां भेदतः वैशिष्ट्यात्, विलक्षणस्य अलौकिकस्य चमत्कारस्य साश्चर्य्यानन्दस्य बीजं कारणम् ॥ ६० ॥
Наполненная безупречной расой (вкусом – эмоцией) со словами наполненными украшениями (аланкара) и смыслом в соответствии со стихосложением (кавикарм) называется поэзией. Различие между поэзией и прозой порождает уникальную и блестящую поэзию.