Чанакья Нити

Чанакья нити 1.13

यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते ।ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव हि ॥ ०१-१३ जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है,उसका निश्चित भी नष्ट हो जाता है। अनिश्चित तो स्वयं नष्ट होता ही है। Тот, кто отказывается от достоверного (дословно – устойчивая речь) и прибегает к неопределенному,Его устойчивость также разрушается. Неустойчивое разрушается само собой.

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Чанакья нити 17.14

परोपकरणं येषां जागर्ति हृदये सताम् ।नश्यन्ति विपदस्तेषां सम्पदः स्युः पदे पदे ॥ जिसमे सभी जीवो के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर मात करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है. Тот, у кого есть чувство сочувствия ко всем живым существам (परोपकार), тот преодолевает все трудности

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Чанакья нити 17.15

आहारनिद्राभयमैथुनानिसमानि चैतानि नृणां पशूनाम् ।ज्ञानं नराणामधिको विशेषोज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः ॥ भोजन करना, नींद लगने पर सो जाना, किसी खतरनाक वस्तु और परिस्थिति से डर जाना, तथा सम्भोग करके सन्तान पैदा करना| ये सब बातें मनुष्यों और पशुओं में समान रूप से पाई जाती है। किन्तु अच्छे-बुरे का ज्ञान, विद्या का ज्ञान आदि केवल मनुष्य

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Чанакья нити 17.11

दानेन पाणिर्न तु कंकणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन।मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मंडनेन।। सच्ची सुंदरता की चर्चा करते हुए हाथों की सुन्दरता दान से है न की हीरे जवाहरात जड़े गहने पहनने से, शरीर नहाने से स्वच्छ होता है, न की चन्दन तेल लगाने से| सज्जन सम्मान से संतुष्ट होता है, खाने पिने

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Чанакья нити 17.2

कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्धिंसने प्रतिहिंसनम् ।तत्र दोषो न पतति दुष्टे दुष्टं समाचरेत् ॥ जैसे को तैसा के व्यवहार की पक्ष रखते हुए कहते हैं कि उपकारी के साथ उपकार, हिंसक के साथ हिंसा और दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए| हमेशा परोपकार, दया और सीधे बने रहना मुर्खता और कायरता का प्रतीक है|

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Чанакья нити 17.1

पुस्तकप्रत्ययाधीतं नाधीतं गुरुसन्निधौ ।सभामध्ये न शोभन्ते जारगर्भा इव स्त्रियः ॥ यदि कोई भी व्यक्ति केवल किताबों से पढ़कर बिद्या लेता है किसी गुरु के सानिध्य में रहकर विद्या प्राप्त नहीं करता| ऐसे व्यक्ति का भरी सभा में उसी प्रकार अनादर होता है जैसे की गेर व्यक्ति के द्वारा गर्भवती महिला का होता है| अर्थार्थ एक

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Чанакья Нити 16.20

पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनं ।कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम् ॥ जिसका ज्ञान किताबो में सिमट गया है और जिसने अपनी दौलत दुसरो के सुपुर्द कर दी है वह जरुरत आने पर ज्ञान या दौलत कुछ भी इस्तमाल नहीं कर सकता. Тот, чье знание ограничено лишь книгами, и тот, кто передал свое

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Чанакья нити 16.17

प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः।तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।। प्रिय मधुर वाणी बोलने से सभी मनुष्य संतुष्ट हो जाते हैं। अतः मधुर ही बोलना चाहिए। वचनों का गरीब कोई नहीं होता Говоря приятные слова мы всех можем сделать довольными. Вот почему нужно говорить приятно. Никто еще не обеднел от приятных слов.

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Чанакья нити 14.20

त्यज दुर्जनसंसर्ग भज साधुसमागमम्।कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः।। दुष्टों का साथ छोड़ दो, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन अच्छे काम करो तथा सदा ईश्वर को याद करो । यही मानव का धर्म है । Оставь общество нечестивых, общайся с добрыми, твори добрые дела день и ночь и всегда помни о том, что за пределами времени(Боге). Это

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Чанакья нити 14.19

धर्मं धनं च धान्यं गुरोर्वचनमौषधम्।संगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा न तु जीवति।। धर्म, धन, धान्य, गुरु की सीख तथा औषधि इनका संग्रह करना चाहिए अन्यथा व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। Религию (честь и долг), богатство, зерно, учения Гуру и лекарства нужно собирать, иначе человеку не выжить. Здесь, как обычно в самскрите – есть дополнительные смыслы. संग्रह –

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Чанакья нити 14.15

प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम्।आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः।। जो व्यक्ति प्रसंग के अनुसार बातें करना, प्रभाव डालने वाला प्रेम दिखाना तथा अपनी शक्ति के अनुसार क्रोघ करना जानता है उसे ही पंडित कहते हैं| Человека, который умеет говорить в сообразно ситуации, проявлять любовь, которая сообразна его переживаниям , и гневается в сообразно, его называют

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Чанакья нити 14.11

अत्यासन्न: विनाशाय दूरस्था न फलप्रदाः |सेव्या मध्यमभावेन राजवह्निर्गुरुः स्त्रियः || राजा, आग , गुरु तथा स्त्रियों से अत्यन्त घनिष्ठता विनाशकारी होती है और इनसे दूरी बनाये रखना भी फलप्रद (फ़ायदेमन्द ) नहीं होता है | अतः इनकी सेवा तथा इनसे संपर्क मध्यम भाव से करनी चाहिये Atyaasannah = ati + aasannah. Ati = Слишком сильно.

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Чанакья нити 14.9

दूरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थितः।यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः।। जो ह्रदय में विधमान है वह दूर रहते हुए भी समीप है, लेकिन जो ह्रदय के समीप नहीं है वह पास रहते हुए भी दूर है| То, что в сердце – близко, хотя и далеко(физически), а то, что не в сердце, далеко, хотя

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Чанакья 14.8

दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा।। व्यक्ति को कभी अपनी दानशीलता पर, अपने – तप, अपनी वीरता पर, अपनी बुद्धिमत्ता पर या अपनी नीतिपरकता पर अहंकार नही करना चाहिये क्योंकि इस संसार में एक से एक बढ़कर दानवीर हैं, तपस्वी हैं, शूरवीर हैं, विज्ञानी हैं, बुद्धिमान हैं और नीतिज्ञ

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Чанакья нити 14.5

जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि।प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तितः।। जल में तेल, कपटी को बताया हुआ रहस्य, सुपात्र को दिया गया दान भले ही वह थोड़ा ही क्यों न हो, सुयोग्य को दिया गया ज्ञान अपने गुणों कारण स्वयं ही बढ़ते हैं। Масло в воде, тайна, рассказанная лицемеру, дар, данный достойному человеку,

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Чанакья нити 14.1

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि अन्नमापः सुभाषितम्।मूढः पाषाणखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।। इस प्रथ्वी पर केवल तीन ही रत्न हैं, अन्न जल और मधुर वचन, मूर्खों ने पत्थर के टुकड़ों को रत्न बना दिया है| जीवन यापन के लिए अन्न जल की ही आवश्यकता है, रत्न हीरे पन्ने आपकी भूंख और प्यास को नहीं बुझा सकते हैं और इस समाज

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Чанакья Нити 13.19

युगान्ते प्रचलेन्मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः।साधवः प्रतिपन्नार्थान्न चलन्ति कदाचन।। महापुरुषों के गुणों की चर्चा करते हुए कहते हैं, युग का अंत होने पर चाहे सुमेरु पर्वत अपने स्थान से हट जाए, कल्प का अंत होने पर सातों समुन्द्र भी विचलित हो जाएँ, लेकिन सज्जन पुरुष कभी भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होते| Обсуждая качества великих

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Чанакья Нити 13.14

यथा धेनु सहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम्।तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति।। जैसे हज़ारों गायों के झुण्ड में भी बछड़ा अपनी माँ के पास ही जाता है, ऐसे ही मनुष्य के द्वारा किये गए कर्म उसके पीछे पीछे आते हैं| व्यक्ति अपना भविष्य, वर्तमान के कर्मों से निर्माण करता है| Точно также, как теленок идет к своей

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Чанакья Нити 13.9

धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्वते।अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम्।। जो व्यक्ति अपने जीवन में धर्म, अर्थ (धन), काम और मौक्ष इनमे से किसी को भी प्राप्त नहीं कर पाता है,उसका जीवन बकरी के गले में निकले स्तन के सामान होता है जो किसी भी काम का नहीं है| Человек, который не может достичь дхармы(чести и праведности), артхи

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Чанакья Нити 13.2

गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः ॥ हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है. Не будем сожалеть о пройденном. Давайте даже не будем беспокоиться о будущем. Благоразумные люди живут только настоящим.

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Чанакья нити 12.19

जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।स हेतु सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।। जैसे एक-एक बूंद पानी डालने से घड़ा भर जाता है। इसी तरह विद्या, धर्म औरधन का भी संचय करना चाहिए। अभिप्राय यह है कि जैसे एक-एक बूंद डालते रहने से धीरे-धीरे घड़ा भर जाता है। इसी प्रकार धीरे-धीरे ज्ञान, धर्म तथा धन दौलत का भी संचय

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Чанакья Нити 11.10

कामं क्रोधं तथा लोभं स्वाद शृंगारकौतुकम्।अतिनिद्राऽतिसेवा व विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत्।। चाणक्य यहाँ विद्यार्थी को क्या नहीं करना चाहिए इसके बारे में बताते हुए कह रहे हैं, की एक विद्यार्थी को स्त्री सहवास, क्रोध करना, लोभ करना, स्वाद यानि जीभ का चटोरापन, बनाव श्रृंगार, घूमना फिरना, अधिक सोना और किसी की भी ज्यादा सेवा करना बिद्या

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Чанакья Нити 11.5

गृहाऽऽसक्तस्य नो विद्या न दया मांसभोजिनः।द्रव्य लुब्धस्य नो सत्यं न स्त्रैणस्य पवित्रता।। आचार्य चाणक्य कहते हैं, जो व्यक्ति घर गृहस्थी में ही लगा रहता है, वह ज्यादा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है, मास खाने वाले में कभी दया नहीं होती, धन का लोभी कभी सत्य नहीं बोलता और हमेशा स्त्रियों के पीछे भागने वाला

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Чанакья Нити 12.11

सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा ।शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः ॥ सत्य मेरी माता है. अध्यात्मिक ज्ञान मेरा पिता है. धर्माचरण मेरा बंधू है. दया मेरा मित्र है. भीतर की शांति मेरी पत्नी है. क्षमा मेरा पुत्र है. मेरे परिवार में ये छह लोग है. Истина – мать. Знание —

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Чанакья Нити 15.2

एकमेवाक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ।पृथिव्यां नास्ति तद्द्रव्यं यद्दत्त्वा सोऽनृणी भवेत् ॥ यदि कोई गुरु एक अक्षर भी सिखा दे, तो उसके ऋण से मुक्त होने के लिए प्रथ्वी पर ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जिसे देकर इस ऋण से मुक्त हुआ जा सके| गुरु के द्वारा दिया गया ज्ञान अनमोल है उसका कोई मोल नहीं

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Чанакья Нити 10.9

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥ जिसे अपनी कोई अकल नहीं उसकी शास्त्र क्या भलाई करेंगे. एक अँधा आदमी आयने का क्या करेगा. Тому у кого нет собственного рассудка, какую пользу принесут инструкции (холодное оружие) (шастры) ? Слепому какая польза от зеркала ?

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Чанакья Нити 10.6

येषां न विद्या न तपो न दानंज्ञानं न शीलां न गुणो न धर्मः ।ते मर्त्यलोके भुवि भारभूतामनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ जिन लोगों के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न धर्म।वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में मृग/जानवर की तरह से घूमते रहते

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Чанакья Нити 10.5

रङ्कं करोति राजानं राजानं रङ्कमेव च ।धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः ॥ नियति एक भिखारी को राजा और राजा को भिखारी बनाती है. वह एक अमीर आदमी को गरीब और गरीब को अमीर Судьба делает нищего королем, а короля нищим. Она делает богатого бедным, а бедняка богатым.

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Чанакья Нити 10.3

सुखार्थी चेत्त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत्त्यजेत्सुखम् ।सुखार्थिनः कुतो विद्या सुखं विद्यार्थिनः कुतः ॥ जिसे अपने इन्द्रियों की तुष्टि चाहिए, वह विद्या अर्जन करने के सभी विचार भूल जाए. और जिसे ज्ञान चाहिए वह अपने इन्द्रियों की तुष्टि भूल जाये. जो इन्द्रिय विषयों में लगा है उसे ज्ञान कैसा, और जिसे ज्ञान है वह व्यर्थ की इन्द्रिय तुष्टि में

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Чанакья Нити 10.1

धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः ।विद्यारत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु ॥ जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है. Тот, у кого нет денег, не беден. Он не

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